ब्यंग बाण : कहब त लग जाई धक्क से

रै,भक्त…कितना निच्चु गिरेंगा रे…? कब अपनी आक्खें खोलेगा रे…? कब तेरा ज़मीर धिक्कारिंगा रे…कब तू सच को स्वीकारेगा रे….? 
तुझे कश्मीर में धर्मपरिवर्तन दिख जाता है…और यूपी के चीरहरण पर चुप हो जाता है…!
तू बंगाल चुनाव में हिंसा पर ममता को हटा राष्ट्रपति शासन लगाना चाहता है…मगर यूपी के पंचायत चुनाव की अराजकता पर मुहं पर ताला लगा लेता है !  
तू जिस कां’ग्रेस को कोसते न आघात है,उसी कां’ग्रेस के ढेकनवा नेता को फलाने जी के साथ मंत्री पद के साथ गलबहियां करता पाता है। 
तू जिस स’पा सरकार की खामियां गिनाता है उसी स’पा सरकार की योजनाओं को जोगी जी को उद्घाटन करते पाता है। और तो और वही स’पा सरकार द्वार  (एम्बुलेंस पुलिस वाहन हास्पिटल) कोरोनाकाल में सबसे अहम रोल निभाता है।
अब से सम्भल जा भाई, देख मुरुल्लो को टाइट करने के चक्कर में जनता सामान्य जरूरत की चीजों को पाने के लिए अब फाईट करने लगी है। 
सभी बातों से मूक सहमत होने के बावजूद। जब तू कहता है कि “फलाने जी” या उनके पाल्टी का विकल्प क्या है..? और बुरा सा मुहं बनाकर कहता है कि इसे न लायें तो क्या &&#%# ढेकनवा को लायें…? तब तुम्हारे दर्द बेबसी के साथ तुम्हारे दिमाग में भर दिये गये फिजूलता पर बहुत तरस आता है।
 क्योंकि “फलाने एंड कम्पनी” के आईटीसेलियों एक माइंडसेट के तहत तुम्हें  विकल्पहीन हालत में छोड़ दिया है, जबकि विकल्प तमाम है। 
यह तुम्हारी लाचारी ही है कि तुम मंदी महंगाई बेरोजगारी से बद से बद्तर वाले हाल में जा रहे हो…फिर भी फलाने जी फलाने जी चिल्ला रहे हो…! क्योंकि तुम्हारे अंदर एक दूसरे समुदाय के प्रति घृणा और डर को बहुत गहराई से प्लांट किया जा चुका है,जिससे चाहकर भी तुम मुक्त नहीं हो पा रहे हो।
सच तो यह है कि तुम बवासीर की तरह होते जा रहे हो…न बता पा रहे हो…न दिखा पा रहे हो…बस दर्द से घूँटते जा रहे हो…इससे पहले की तुम्हारा बवासीर भगंदर बन जाये…चेत जाओ रे…ऐसा न हो कि देर हो जाये…तुम तब जागो जब कारवां लूट जाये। और अपना फलाने झोला उठाये और निकल जाये… देख मेरे भक्त भाई…मेरा तंज कभी उनपर व्यक्तिगत नहीं होता है…होता है तो वह मंदी महंगाई बेरोजगारी रसातल में जाती अर्थव्यवस्था जैसे आम जनता से जुड़े नीति मुद्दे पर।
मग़र उसपर भी “फलाने के लोग” चाहतें हैं कि जो सिस्टम चल रहा है उससे सवाल न उठायें…या तो विपक्ष को कोसें गरियायें… ध’र्म मंदिल हिन्नु मुसरिम में उलझे उलझाएं ! 
ताकि फलाने एंड पाल्टी “विकास” की आस में बैठी जनता से बैठे ठाले वोट पायें। बिना काम वाले दाम के रूप में रिपीट होते जायें। 
आगे तेरी मर्जी मेरे भक्त भाई… उम्मीद है कि मेरी थोड़ी सी बात भी तेरे भेजे में होगी आई….मैं भी  तुम्हारे तरह कभी भक्त था….उस वक्त फलाने जी के प्रेम में डूबा हुआ कमबख्त था…जबसे आंख खुली तबसे सबकी खोल रहा हूं…इसलिए अब इतना बोल रहा हूँ। 

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