खोजी रिपोर्ट : ✍ विजय विनीत

वाराणसी। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के जयचंदों ने मिलकर पार्टी की लुटिया डुबो दी। यहां सपा हारी नहीं, हराई गई। विधिवत योजना बनाकर। इस बात से सपा के तमाम नेता और कार्यकर्ता आहत हैं। बनारस के कुछ कद्दावर नेताओं पर बिकने के आरोप जड़े जा रहे हैं। जयचंदों का हाल यह है कि ये अपनी बेईमानी का ठीकरा बनारस की सरकार के माथे मढ़ना चाहते हैं। नंगा सच यह है कि बनारस के कलेक्टर कौशलराज शर्मा ने कानून का साथ दिया। बेईमान जयचंदों ने पहले से ही इतना छेद कर दिया था, जिसे बनारस के कलेक्टर चाहते तब भी बंद नहीं कर सकते थे।
बनारस में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित की गई थी। सपा ने पार्टी के नेता राजेश यादव उर्फ नत्थू की पत्नी श्रीमती चंदा यादव को प्रत्याशी बनाया था। दूसरी ओर, भाजपा ने श्रीमती पूनम मौर्य पर बाजी लगाई। सपा के पास इतने अधिक वोटर थे कि वो थोड़ा प्रयास करके चुनाव जीत सकती थी। भाजपा की मुश्किल यह थी कि उसे यह सीट जीतने के लिए काफी सदस्य जुटाने पड़ सकते थे, लेकिन नामांकन में ही खेल हो गया।
सूत्रों की मानें तो सपा ने पर्चा दाखिले की जिम्मेदारी संगठन के महासचिव आनंद मौर्य और सपा नेता भैयालाल कन्नौजिया को सौंपी थी। सपा प्रत्याशी को चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी पार्टी के जिलाध्यक्ष सुजीत सिंह उर्फ लक्कड़ यादव के कंधे पर डाली गई थी। 


जानिए कुछ राज की बातें
जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में श्रीमती चंदा यादव ने जिस नोटरियन से अपना अभिलेख प्रमाणित कराया था वो भारत सरकार से एप्रूव नोटरियन था। इस बार के.एन. प्रसाद नामक नोटरियन से अभिलेखों को प्रमाणित कराया गया । इस नोटरियन का पैसा जमा है, लेकिन प्रशासन ने इसके लाइसेंस को रिन्युवल नहीं किया है। बड़ा सवाल यह है कि श्रीमती चंदा यादव ने पहले वाले नोटरियन से अपने अभिलेखों को प्रमाणित कराने की जरूरत क्यों नहीं समझी?  जाहिर है कि अगर सपा के जयचंदों ने नोटरी के जाली होने की सुरागकशी नहीं की होती तो भाजपा प्रत्याशी और उनके समर्थक को पता ही नहीं चलता कि नोटरी गलत है अथवा सही? सूत्र बताते हैं कि यहां सब कुछ सुनोयोजित था और जानबूझकर फर्जी नोटरी से अभिलेखों को प्रमाणित कराने की बात लीक कराई गई। साथ ही योजनाबद्ध ढंग से पर्चा खारिज करा दिया गया। बनारस के इतिहास में यह पहला मामला है जब किसी चुनाव में जाली नोटरी के आधार पर किसी प्रत्याशी का पर्चा खारिज हुआ है।
सपा प्रत्याशी के अभिलेखों को प्रमाणित करने वाले नोटरियन पर अब प्रशासन शिकंजा कस सकता है। उड़ती हुई खबर यह आ रही है कि नोटरियन अब इस बात से इनकार कर रहा है कि उसने किसी अभिलेख को प्रमाणित किया है। वह अपनी मुहर और दस्तखत को जाली बता रहा है। हालांकि कोशिश के बावजूद नोटरियन से संपर्क नहीं किया जा सका। जिला प्रशासन नोटरियन के खिलाफ कार्रवाई के मूड में नजर आ रहा है।
जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में साजिश की बू कई जगहों से आ रही है। पहला, सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा खुद वकील रहे हैं। इन्हें नामांकन पत्र दाखिले की जिम्मेदारी क्यों नहीं सौंपी गई? दूसरा, श्रीमती चंदा यादव ने पहले की तरह अधिकृत नोटरियन से अपने अभिलेखों को प्रमाणित कराने की जरूरत क्यों नहीं समझी? तीसरा बड़ा सवाल सपा के निर्वाचित सदस्यों की नीयत पर भी खड़ा हुआ है। सपा का एक भी निर्वाचित जिला पंचायत सदस्य यह बात कहता नजर नहीं आया कि प्रशासन ने उनका उत्पीड़न किया?
सपा प्रत्याशी के पति राजेश यादव उर्फ नत्थू अब सवाल उठा रहे हैं कि प्रशासन ने कचहरी में गलत लोगों को क्यों बैठा रखा है? हलफनामा में त्रुटि कोई बड़ा इश्यू नहीं था। इसे बदला जा सकता था, लेकिन डीएम और कप्तान ने मिलकर उनकी जीतती हुई बाजी पलट दी। नत्थू इस आरोप को झूठा और बेबुनियाद बताते हैं कि पार्टी में कोई जयचंद है। बिकने-खरीदने की बात पार्टी को बदनाम करने की साजिश है। बनारस की तरह यूपी के सभी जिलों में सपा के प्रत्याशी नहीं, बल्कि डीएम और कप्तान चुनाव लड़ रहे हैं। गुंडई से भाजपा को जिताया जा रहा है। नत्थू ने अपने पक्ष में यह भी सवाल खड़ा किया है कि कलेक्टर सर्किट हाउस में ठहरे मंत्रियों और भाजपा नेताओं से राय- मशविरा करने के लिए क्यों बार-बार जा रहे थे। चुनाव को प्रभावित करने के लिए मंत्री अनिल राजभर और विधायक अवधेश राय जिला निर्वाचन अधिकारी के दफ्तर में क्यों आ-जा रहे थे?
सपा प्रत्याशी के पति के आरोपों और उनके तर्कों में कोई दम नजर नहीं आता। पूर्वांचल में बनारस ही ऐसा जनपद था जहां प्रशासन ने भाजपा के विरोधियों को हुरपेटने का काम नहीं किया। रिटर्निंग आफिसर कौशल राज शर्मा के समक्ष अपराह्न तीन बजे भाजपा ने अचानक आपत्ति दर्ज कराई। कुछ देर बाद सपा ने भी श्रीमती पूनम मौर्य के पर्चे पर एतराज जताया। रिटर्निंग आफिसर ने विधिवत दोनों प्रत्याशियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने के लिए दो घंटे का समय दिया। इस बीच प्रशासन ने सपा प्रत्याशी के खिलाफ शिकायत की जांच कराई तो भाजपा प्रत्याशी का आरोप प्रमाणित हो गया कि श्रीमती चंदा यादव के अभिलेखों का नोटरियन गैर-लाइसेंसशुदा था। प्रशासन ने खुद निर्णय लेने के बजाए राज्य निर्वाचन आयोग को अपनी जांच रिपोर्ट और दोनों पक्षों का जवाब भेजा। जवाब देर से आया और अंततः श्रीमती चंदा यादव का पर्चा खारिज करते हुए भाजपा प्रत्याशी श्रीमती पूनम मौर्य को निर्विरोध चुनाव जीतने की हरी झंडी दिखा दी गई।
बनारस में सपा के वरिष्ठ नेता रामबाबू यादव, जयशंकर यादव, उमेश राजभर समेत कई कार्यकर्ताओं ने अपने फेसबुक वाल पर जयचंदों की साजिश के बाबत पोस्ट लिखी है। साथ ही पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से इस मामले की जांच के लिए टीम गठित करने की मांग की है। कइयों ने अखिलेश यादव को विधिवत ट्विट भी किया है। सपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि ईमानदारी का सौदा करने वाले जयचंदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो अगले चुनाव तक कार्यकताओं का मनोबल उठा पाना संभव नहीं होगा। बिकने-खरीदने के खेल में कार्यकर्ताओं का विश्वास टूट रहा है। इस मामले में सपा को कड़ा निर्णय लेने की जरूरत है। सपा कार्यकर्ताओं के आरोपों के बाबत जिलाध्यक्ष सुजीत सिंह लक्कड़ से संपर्क करने की कोशिश की गयी तो उनका फोन बार-बार ‘नाट रिचेबल’ आता रहा। अगर उनका कोई पक्ष आता है तो उसे भी हम विस्तार से प्रकाशित करेंगे।

देखिए फेसबुक पर इस मामले में नेताओं की प्रतिक्रिया

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