पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा का जो रूप देखने को मिल रहा वो अप्रत्याशित है। प्रत्येक सत्ताधारी पक्ष पर प्रत्येक विपक्ष अपनी अपनी आवश्यकता अनुसार लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने और लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप तो लगाता रहता है लेकिन बंगाल में सत्ताधारी पक्ष पर लगाया जाने वाला आरोप एक अकल्पनीय हकीकत को बयां कर रहा है और यह सिर्फ बयां ही नहीं कर रही बल्कि प्रदर्शित भी कर रहा है क्योंकि हिंसा के अनेकों वीडियो वहां की हालिया स्थिति की गवाही कर रही हैं। पश्चिम बंगाल में जो चल रहा है वो सिर्फ लोकतंत्र की ही हत्या नहीं है, वास्तव में तो पूरे मानवता की हत्या की जा रही है। इन घटनाओं पर बंगाल कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए उचित और तर्कसंगत आदेश दिए है। माननीय हाईकोर्ट के इस आदेश ने राज्य सरकार के झूठ के पोल खोल दिए हैं। पूर्व में जब माननीय उच्च न्यायालय ने इन घटनाओं पर फटकार लगाते हुए जवाब मांगा था तब राज्य सरकार ने ऐसी किसी घटना से इनकार करते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया था लेकिन फिर प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने सरकार पर गंभीर टिप्पणियां भी की। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि प्रशासन हिंसा पीड़ितों के सभी मामले प्राथमिकी के रूप में दर्ज करें। न्यायालय के इस आदेश से यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रशासन पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं कर रही। इस बात से यह भी समझा जा सकता है कि जब हमलावरों, अराजकतत्वों पर प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रही है तो अराजकता का वहां क्या हाल होगा। पीड़ितों को किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा होगा। साथ ही न्यायालय के इस आदेश से झूठ का साथ और अराजकता को बढ़ावा देने वाली बंगाल पुलिस भी बेनकाब हो चुकी है। यह राज्य की प्रशासन के लिए बड़े शर्म की बात है। इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि सभी पीड़ितों के लिए चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करें और राशन कार्ड न होने पर भी प्रभावितों के लिए राशन सुनिश्चित किया जाए।अब देखना यह है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन कितनी सजगता के साथ किया जाएगा। यहां यह याद दिलाना आवश्यक है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी ने चुनाव बाद भाजपा समर्थकों को परिणाम भुगतने की धमकी चुनाव के पहले ही दे डाली थी। मतलब इस हिंसा का खाका पहले ही तैयार किया जा चुका था। इसलिए न्यायपालिका को पूरी सजगता और नीति के साथ इस समस्या से पीड़ितों और बीजेपी समर्थकों की रक्षा करनी होगी। चुनाव के बाद टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने उत्पीड़न और दमन का जो घिनौना अभियान छेड़ा है उसमें न सिर्फ हत्याएं की गई बल्कि घरों और दुकानों को जला दिए गए, घरों से बाहर खींचकर महिलाओं और नाबालिग बच्चियों के साथ सरेआम दुष्कर्म किए गए। अगर इन पर अंकुश नहीं लगाया गया, ऐसे जघन्य अपराधों को संरक्षण देने वालों को चिन्हित कर उन पर जवाबदेही नहीं लगाई गई तो राजनीतिक हिंसा का यह खेल रुकने वाला नहीं।