Bihar Bhumi sharve new update

राज्य के औरंगाबाद जिले में बिहार भूमि सर्वे का कार्य ज़ोर-शोर से चल रहा है। इस प्रक्रिया के तहत सभी पंचायतों में आम सभाओं का आयोजन किया जा रहा है ताकि लोगों को भूमि सर्वे की प्रक्रिया और उससे जुड़े नियमों की जानकारी दी जा सके। इसके बावजूद, अधिकतर किसान अभी तक सर्वे की बारीकियों से अनजान हैं और कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

बिहार भूमि सर्वे से जुड़े रैयतों के लिए निर्देश और नियम

भूमि सर्वे के दौरान किसानों, जिन्हें रैयत कहा जाता है, को घबराने की जरूरत नहीं है। अधिकारियों के अनुसार, खतियानी रैयतों को ब्रिटिश शासनकाल के समय के खतियान की छाया प्रति और मालगुजारी रसीद पेश करनी होगी। यह कागजात ज़मीन के स्वामित्व का प्रमाण होते हैं। जो किसान अपनी ज़मीन किसी और से खरीद चुके हैं, उनके लिए केवाला (कब्ज़ा कागजात) प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

भूमि की स्थिति और किसानों की समस्याएं

सर्वेक्षण के दौरान किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर, गैरमजरुआ खास, खरात, गोड़ईती जागीर, और खिजमती जागीर जैसी ज़मीनों पर अधिकार जताने वाले किसानों से जमींदार द्वारा निर्गत किया गया रिटर्न पेश करने को कहा जा रहा है।

भूमि का सही रिकॉर्ड बनाने और सर्वे प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए, बिहार सरकार ने जमाबंदी ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन इस प्रक्रिया में खाता, प्लॉट और ज़मीन के रकबे (आकार) में कई गड़बड़ियाँ सामने आ रही हैं। इसका समाधान कराने के लिए किसान बार-बार अंचल कार्यालय (लोकल सरकारी कार्यालय) का चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन त्रुटियों का समाधान नहीं हो पा रहा है। इस स्थिति में, बिचौलियों की भूमिका और बढ़ गई है, जो किसानों को गुमराह कर रहे हैं और उनसे पैसे ऐंठ रहे हैं।

कैथी भाषा: पुराने कागजात और नई चुनौतियाँ

बिहार में भूमि सर्वे के समय, ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बनाए गए कागजातों जैसे- bihar bhu naksha, खतियान, वंश तालिका आदि का उपयोग हो रहा है। इन कागजातों में ज़मीन के स्वामित्व और अन्य संबंधित जानकारियाँ दर्ज हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ये सभी कागजात कैथी भाषा में हैं।

कैथी, जो एक प्राचीन लिपि है, अब बहुत कम लोग जानते हैं। ज़िले में मुश्किल से कुछ लोग बचे हैं जो कैथी को पढ़ सकते हैं, और वे भी अधिकतर बुजुर्ग हो चुके हैं। ऐसे विशेषज्ञों की मांग इतनी बढ़ गई है कि वे प्रति पेज 500 से 700 रुपये तक मांग रहे हैं। किसानों के पास इस राशि को देने के अलावा और कोई चारा नहीं है, क्योंकि यह कागजात ही उनकी ज़मीन का अधिकार प्रमाणित कर सकते हैं।

वर्तमान में, ज़्यादातर सरकारी अधिकारी भी कैथी को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं, जिससे किसानों की समस्याएँ और बढ़ रही हैं।

समाधान के संभावित रास्ते

  1. डिजिटल रिकॉर्ड्स का सही रखरखाव: भूमि रिकॉर्ड को डिजिटलीकृत करना और उन्हें सही ढंग से अपडेट रखना आवश्यक है। इसके लिए सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और किसानों को भी ऑनलाइन प्रक्रिया के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
  2. कैथी भाषा के विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाना: कैथी भाषा के कागजातों को पढ़ने और समझने के लिए विशेषज्ञों की कमी को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार को इस लिपि को समझने वाले लोगों की सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
  3. बिचौलियों पर नकेल कसना: भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार को बिचौलियों की गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण रखना चाहिए। इसके साथ ही, किसानों को सही जानकारी देने और उनकी मदद करने के लिए विशेष हेल्पलाइन या सहायता केंद्र बनाए जाने चाहिए।

किसानों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

  1. सभी कागजात तैयार रखें: किसानों को सर्वे के समय अपने ज़मीन से संबंधित सभी कागजात जैसे- bihar khata khasra, खतियान, मालगुजारी रसीद, वंशावली और केवाला की कॉपी साथ में रखना चाहिए। इससे उन्हें सर्वेक्षण प्रक्रिया में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
  2. ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल करें: यदि किसान बार-बार अंचल कार्यालय नहीं जाना चाहते हैं, तो वे बिहार सरकार के भूमि रिकॉर्ड वेबसाइट से ऑनलाइन अपनी ज़मीन की स्थिति देख सकते हैं। इसके लिए उन्हें केवल प्लॉट नंबर और खतियान नंबर की जानकारी चाहिए।
  3. शिकायत दर्ज कराएँ: अगर किसी किसान को भूमि सर्वेक्षण में किसी भी तरह की गलती दिखती है, तो उसे तुरंत संबंधित विभाग में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। समय पर शिकायत करने से भविष्य में ज़मीन से जुड़ी समस्याओं से बचा जा सकता है।
  4. कानूनी सलाह लें: अगर किसी किसान को अपनी ज़मीन से संबंधित किसी कानूनी समस्या का सामना करना पड़ता है, तो उन्हें एक अनुभवी वकील की सलाह लेनी चाहिए। यह वकील कानूनी प्रक्रियाओं में मदद करेंगे और ज़मीन की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।

निष्कर्ष

बिहार में भूमि सर्वेक्षण का कार्य किसानों के लिए एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया बन गया है, विशेष रूप से कैथी भाषा में लिखे पुराने कागजात जैसे- bihar bhulekh, खतौनी, खतियान और जमाबंदी आदि में हुई त्रुटियों के कारण। किसानों को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए जागरूक होने और सही कदम उठाने की जरूरत है। सरकारी तंत्र को भी इस प्रक्रिया को सुचारु बनाने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए ताकि किसानों की समस्याओं का जल्द समाधान हो सके।

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