बीकानेर Abhayindia.com राजस्थानी पुरोधा महान इटालियन विद्वान लुईजि पीओ टैस्सीटोरी की 136वीं जयंती के अवसर पर राजस्थानी भाषा मान्यता को समर्पित तीन दिवसीय “ओळू” समारोह के दूसरे दिन आज भव्य सम्मान समारोह के तहत राजस्थानी साहित्य, भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली प्रतिभाओं का डॉ. टैस्सीटोरी प्रज्ञा सम्मान-2023 नागरी भण्डार स्थित सुदर्शन कला दीर्घा में प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा अर्पण किया गया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ शोध निर्देशक डॉ. भंवर भादाणी ने कहा कि प्रतिभाओं का सम्मान करना समाज का दायित्व है, क्योंकि प्रतिभाएं अपने योगदान से समाज और नई पीढ़ी को एक नई दिशा देती है। इसी महत्वपूर्ण कार्य को करने वाली संस्थाएं एवं आयोजक साधुवाद के पात्र है। क्योंकि इन्होंने राजस्थानी साहित्य, भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में तीन प्रतिभाओं का सही चयन कर उन्हें सम्मानित करने का उपक्रम किया है। डॉ. भादाणी ने आगे कहा कि तीन दिवसीय ओळू समारोह के माध्यम से निश्चित तौर पर हमारी मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता को बल मिलेगा।

समारोह के मुख्य अतिथि डूंगर महाविद्यालय के प्राचार्य एवं वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ. राजेंद्र पुरोहित ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी के नाम से प्रज्ञा सम्मान प्रारम्भ करना सकारात्मक प्रयास है। ऐसे सम्मान समारोह के माध्यम से राजस्थानी, साहित्य, भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करने वाली प्रतिभाओं के योगदान का मान करना सुखद है। ऐसे आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है। डॉ. पुरोहित ने कहा कि उक्त सम्मान समारोह के माध्यम से राजस्थानी, साहित्य, भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने वाली प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिलेगा जिसके लिए आयोजक प्रशंसा के पात्र है। ऐसे आयोजन ही राजस्थानी भाषा की मान्यता को संबल प्रदान करेंगे।

समारोह के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि आज के संवेदनहीन दौर में अपनी मातृभाषा उसके साहित्य और उसकी संस्कृति के प्रति मौन साधक रहकर कार्य करना ऋषि-तुल्य कार्य है। हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा में जहां वेद और उपनिषिद के माध्यम से विद्वान लोग भाषा साहित्य और संस्कृति के दृष्टा बन सामाजिक सरोकार का निर्वहन करते थे उसी क्रम में आज के बाजारवाद के युग में जो प्रतिभाएं साहित्य, भाषा और संस्कृति के लिए योगदान दे रही है उनका सम्मान करना हमारा दायित्व है।

प्रारंभ में स्वागताध्यक्ष वरिष्ठ शिक्षाविद एवं संस्कृति कर्मी संजय सांखला ने कहा कि आज सम्मानित होने वाली तीनों प्रतिभाओं ने पूरे देश में राजस्थान और राजस्थानी को अपने कार्यों से गौरवान्वित किया है। हम ऐसी प्रतिभाओं का सम्मान कर स्वयं को सम्मानित महसूस करते हैं।  सम्मानित होने वाली प्रतिभाओं के व्यक्तित्व और कृतित्त्व पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र की प्रतिभा डॉ. मदन केवलिया बहुआयामी एवं बहुभाषाविद देश की ख्यातिप्राप्त विभूति है, भाषा के क्षेत्र में डॉ. मदन सैनी देश के जाने माने भाषाविद् तो है ही साथ ही आप कुशल आलोचक एवं संपादक भी है। संस्कृति के क्षेत्र मे हिंगलाज दान रतनू राजस्थानी लोक संस्कृति के महत्वपूर्ण संवाहक है। आप राजस्थान से बाहर खासतौर से बंगाल व अन्य प्रदेशों में राजस्थानी संस्कृति के सांस्कृतिक दूत बन अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

अपने सम्मान के प्रतिउत्तर देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन केवलिया ने कहा कि साहित्य सृजन एक साधना है जिसे हमें सतत करते रहना चाहिए। मुझे डॉ. टैस्सीटोरी साहित्य प्रज्ञा सम्मान प्रदत्त करने के अवसर पर मेरी साहित्यक सृजन करने की चुनौतियां और बढ़ जाती है। इसी क्रम में डॉ. टैस्सीटोरी भाषा प्रज्ञा सम्मान से सम्मानित डॉ. मदन सैनी ने कहा कि हर साहित्यकार को अपनी मातृभाषा में सृजन करना चाहिए। साथ ही भाषा के प्रति एक सजग व्यवहार रखते हुए अपना सृजन करना चाहिए। ऐसे सम्मान मिलने पर मुझे हर्ष के साथ-साथ मेरी और अधिक जिम्मेदारी का भी एहसास होता है।

सम्मान अर्पण की तीसरी प्रतिभा हिंगलाज दान रतनू जिन्हें डॉ. टैस्सीटोरी संस्कृति प्रज्ञा सम्मान अर्पण किया गया ने कहा कि हमारी संस्कृति देश ही नहीं विदेशों तक अपनी धाक जमा चुकी है। मेरा सौभाग्य है कि मैं देश के अनेक प्रांतों में एवं विदेशों के अनेक देशों में सांस्कृतिक दल ले जाकर राजस्थानी लोक संस्कृति को विश्व पटल पर मान सम्मान दिलाने का दायित्व निर्वहन किया है। ऐसे सम्मान के माध्यम से मुझे अत्यन्त खुशी के साथ अपनी संस्कृति के लिए और काम करने का सकारात्मक बल मिला है।

इस अवसर पर तीनों प्रतिभाओं का समारोह के अतिथियों एवं आयोजकों द्वारा माला, श्रीफल, साफा, शॉल एवं अभिनंदन पत्र आदि का अर्वण कर मान-सम्मान किया गया। प्रतिभाओं के अभिनंदन पत्र का वाचन राजस्थानी के साहित्यकार डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने किया। सम्मान समारोह का संचालन करते हुए युवा कवि गिरिराज पारीक ने संस्था द्वारा प्रारंभ किए गए सम्मान समारोह के बारे में बताते हुए कहा कि विभूतियों का चयन उच्च स्तर के विद्वानों द्वारा किया गया। गत वर्ष उक्त तीन क्षेत्रों का सम्मान प्रवासी राजस्थानियों को अर्पित किया गया था। अंत में सभी का आभार ज्ञापित साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ. नमामी आचार्य ने किया। समारोह में नंदकिशोर सोलंकी, जाकीर अदीब, डॉ. अजय जोशी, शरद केवलिया, मधुरिमा सिंह, डॉ. नितिन गोयल, प्रेमनारायण व्यास, कपिला पालीवाल, इस्हाक गौरी शफ्क, डॉ. हैदर अली, वली गौरी, डॉ. एजाज, विकास पारीक, बुनियाद हुसैन, नगेद्र किराड़ू, डॉ. नमामी आचार्य, घनश्याम सिंह, जुगल किशोर पुरोहित, गोपाल कुमार कुंठित, इसरार हसन कादरी, डॉ. फारूक चौहान, पुनीत रंगा, डॉ. चंचला पाठक, डॉ. चंद्रशेखर कच्छावा, आत्माराम भाटी, असद अली असद, बाबूलाल छंगाणी, डॉ. तुलसीराम मोदी, इरशाद अजीज, गंगाबिशन बिश्नोई, समी उल कादरी, नेमचंद गहलोत, कैलाश टाक, आनंद मस्ताना, योगेश व्यास, गोपाल पुरोहित, गोपाल गौतम, माजीद खा गौरी, साजिद, अनीश, हरिनारायण आचार्य, छगन सिंह, अब्दुल शकूर बीकाणवी सहित विभिन्न कलानुशासन के गणमान्यों की गरिमामय साक्षी रही।

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