एपिसोड 1

घर से सफारी के क्लोन वर्जन सोफारी अटैची में दो चार कपड़े लत्ते चारखने वाला लाल गमछा। सिबाका टॉप ब्रश मंजन और सलेक्शन की चिट्ठी के साथ निकल पड़ा था। वहां जहां गांव का हर पढ़ाकू लड़का अपने सपनों को परवाज़ देना चाहता है।
यानी देश के दिल दिल्ली,वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी में मेरा एडमिशन के लिए सेलेक्शन हो गया था। सलेक्शन तो बनारस यूनिवर्सिटी में भी हुआ था। मगर यहां रहतें तो गंगा जी का घाट और गलियों में बिकने वाली चाट के चक्कर में पढ़ाई का परेश रावल हो जाता। इसलिए घर वालों ने कहा बेटा यहां रहकर एम्मे ओम्मे करने की बजाय दिल्ली से ही एमए करो।
चूंकि परिवार में पईसा मात्र इतना ही था जितना फिल्मों में प्रेम चोपड़ा की अच्छाई । सो अम्मा ने गहने गिरिवी रख हमें इस बिनाह पर भेजने को राजी हो गई,कि हमारी फोटो वह पढ़ाई के बाद अखबारों में देखेगी। किसी के ब्याह में पूड़ी परोसते नहीं। उनका सपना था कि मैं अफ़सर बनकर आऊं।
टिकट…टिकट… की आवाज़ पर देखा तो सामने टीटी था। ये कहाँ जाओगे टिकट दिखाओ । उसने मेरी तरफ देखते हुए बोला।
हमने अटैची की तरफ हाथ बढ़ाया तो वह बोला । जेब में टिकट नहीं रखे हो…यूपी के हो काs..? पहली बार सफर पर निकले हो। हम बोलें हां…अम्मा बोली है की टिकट पैसा सम्भाल कर रखना। इसलिए सब अटैची में रख दिया है।
मैंने अटैची को टीटी और बाकी यात्रियों की आँखों के अतिक्रमण से बचाने के लिए आधा ही खोलकर किताबों में टिकट टटोलने लगा। वह मुस्कुराते हुए बोला पूरा खोल लो…तुम्हारा पईसा थोड़े ही ले लेंगे।
अब उसे क्या हम बताते की जनरल नॉलेज कम्पटीशन की किताबों के साथ ” मस्तराम,करमचंद,प्यासी दुल्हन लाल गली की लैला” टॉइप की अर्ध रोमांटिक किताबें भी गड्डमड्ड पड़ी हुई हैं।अगर अटैची पूरी खुल गयी तो इज्जत काअमरीशपुरी हो जाएगा।
दरअसल हमारे जमाने में मियां ख़लीफ़ा की जगह बस बस खलीफा होते थें और  “सन्नी” के नाम पर सिर्फ “देओल” थें कोई “लियोनी” नहीं होती थी। हमे मस्तरराम में पिंकी प्रिया टिया जैसे काल्पनिक किरदारों से ही सन्तोष करना पड़ता था।उन किताबों का लेखक किसी लड़की की तारीफ में ‘उन्नत ‘ ‘सुडौल ‘ ‘भरे-भरे ‘ जैसे शब्द मालाओं से करता था।सच तो यह है कि हिंदी के कई कठिन शब्दों से मस्तराम करमचंद टाईप के लेखकों ने ही परिचय कराया था।
उस वक्त मोबाईल स्मार्टफोन टॉइप की कोई चीज थी नहीं जैसा आजकल है ।इसलिए लड़के रास्तों में लगे (A) कैटेगरी की फिल्मों के पोस्टर को कनखियों से देखकर तृप्त होते थें। कभी कभार दोस्त आकर कहते कि अबे छत पर चल “एक मस्त चीज दिखाता हूँ” तब समझ जाता था कि साल्ला ई चौपतिया चित्रों वाला रंगीन किताब लाया है। हमें पढ़ाई से भटकाने के लिये। हम मना करते तो कहता साल्ले चेक करा हक़ीम फुरकान से, अंदर से फेल मार गया है तू।
अरे कहां खो गया है तू…टिकट खोज रहा है कि कारू का खज़ाना…?बेवजह समय बर्बाद कर रहा है। टीटी ने नाराज होते हुए कहा।
क्रमशः…..

धारावाहिक का अगला भाग कल सुबह

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